सोमवार, 24 सितंबर 2007

बचपन की यादें

लिख रहा हूँ मैं बचपन की यादें संजोकर,
ये सोचा है कल ये, फंसाने बनेंगे।

जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।

सुखों के समंदर में, दुःख के ये मोती,
हमारी खुशी को, बढ़ाया करेंगे।
ये थोड़े से दुःख हैं, है लम्बा ये जीवन,
जीवन में शायद, ये थोड़े पड़ेंगे।

जब कभी सुख से दिल ऊब जाया करेगा,
ये दर्दों के नगमे, सुनाया करेंगे।
जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।

जीवन की उन तंग राहों में हमको,
ये तन्हा से आलम ही भाया करेंगे।

ये छोटा सा बचपन, ये तन्हा सा जीवन,
कल हमें याद आकर, रूलाया करेंगे।

जब कभी मौत का खौफ, दिल को डसेगा,
ये जीवन से हमको, डराया करेंगे।

जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।
वक्त के गर्भ में, हम समा जायेंगे जब,
ये गोदी में हमको खिलाया करेंगे।
कुछ कदम दूर, जब मौत हमसे रहेगी,
ये आँचल में हमको, छुपाया करेंगे।

इस दुनिया से जब, हमको जाना पड़ेगा,
ये अपनों को तसल्ली, दिलाया करेंगे।
जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।

हम भी कभी, इस जहाँ में रहे थे,
कल ये ही याद बनकर, बताया करेंगे।

दर्द से जब कभी, कोई रोने लगेगा,
दिलबरू बनके ये, दर्द बांटा करेंगे।

तन्हाई जब तुमको, ड़सने लगेगी,
दोस्त बनकर ये, वक्त गुजारा करेंगे।

जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे गुनगुनाया करेंगे।