बुधवार, 14 नवंबर 2007

पापा

पापा आई तुम्हारी याद, बहुत मैं तन्हा हूँ,
फिर से सालों बाद, बहुत मैं तन्हा हूँ।
जिन काँधों पर बचपन ढ़ोया पाला पोसा,
वो नही हैं मेरे पास, बहुत मैं तन्हा हूँ।
फिर से सालों बाद ...
जिसकी गोदी में सर रखकर मैं रो लूं,
वो पिता नही हैं पास, बहुत मैं तन्हा हूँ।
हर वक्त दौडते, जीवन के तूफानों में,
है 'तेज' की धूंधली याद, बहुत मैं तन्हा हूँ।
फिर से सालों बाद ...
राहें भी हैं मंजिल भी और जज्बा भी,
है वक्त भी मेरे साथ मगर मैं तन्हा है।
वो 'प्रकृति' जिसको ढूंढ रहा था मैं अब तक,
है 'संयोग' से मेरे साथ मगर में तन्हा हूँ।
फिर से सालों बाद ...

बुधवार, 10 अक्तूबर 2007

एक अरसा हो चुका - गजल

जिसे अब ढूंढते हो तुम, मेरी सूनसान गलियों में,
एक अरसा हो चुका गुजरे, यहां से उस जमाने को।

तुम्ही पर प्यार की दौलत, लुटाया करते थे जब हम,
तड़पते थे हमेशा ही, तेरे नजदीक आने को।
तुम्ही ने फेंका था पत्थर, मेरे सीने पर गुस्से से,
तेरी ही साजिश थी वो सब, मुझे नीचा दिखाने को।

अरे अब नोंच भी ड़ालो, मेरे सीने के जख्मों को,
मचलते क्यूँ हो अब तुम ही, मरहम इन पर लगाने को।

मेरा दिल टूटा खंड़हर है, यहाँ वीरान यादें हैं,
सभी कुछ जानते हो तुम, बचा है क्या छिपाने को।
मेरी खोयी सी आँखों में, ना अब तुम इस कदर झांको,
ये बस जलती ही रहती हैं, नही आँसू बुझाने को।
मेरे सीने की लपटों को, यूँ चुपके से हवा ना दो,
कहीं ऐसा ना हो कि ये, जला ड़ालें जमाने को।

जिसे अब ढूंढते हो तुम...

सोमवार, 24 सितंबर 2007

बचपन की यादें

लिख रहा हूँ मैं बचपन की यादें संजोकर,
ये सोचा है कल ये, फंसाने बनेंगे।

जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।

सुखों के समंदर में, दुःख के ये मोती,
हमारी खुशी को, बढ़ाया करेंगे।
ये थोड़े से दुःख हैं, है लम्बा ये जीवन,
जीवन में शायद, ये थोड़े पड़ेंगे।

जब कभी सुख से दिल ऊब जाया करेगा,
ये दर्दों के नगमे, सुनाया करेंगे।
जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।

जीवन की उन तंग राहों में हमको,
ये तन्हा से आलम ही भाया करेंगे।

ये छोटा सा बचपन, ये तन्हा सा जीवन,
कल हमें याद आकर, रूलाया करेंगे।

जब कभी मौत का खौफ, दिल को डसेगा,
ये जीवन से हमको, डराया करेंगे।

जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।
वक्त के गर्भ में, हम समा जायेंगे जब,
ये गोदी में हमको खिलाया करेंगे।
कुछ कदम दूर, जब मौत हमसे रहेगी,
ये आँचल में हमको, छुपाया करेंगे।

इस दुनिया से जब, हमको जाना पड़ेगा,
ये अपनों को तसल्ली, दिलाया करेंगे।
जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।

हम भी कभी, इस जहाँ में रहे थे,
कल ये ही याद बनकर, बताया करेंगे।

दर्द से जब कभी, कोई रोने लगेगा,
दिलबरू बनके ये, दर्द बांटा करेंगे।

तन्हाई जब तुमको, ड़सने लगेगी,
दोस्त बनकर ये, वक्त गुजारा करेंगे।

जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे गुनगुनाया करेंगे।

शनिवार, 25 अगस्त 2007

सरस्वती वन्दना

हे माँ वीनावादिनी वर दो, वरण करूं सच्चाई सदा।
दिल को इतना प्रेम से भर दो, जग में करूं अच्छाई सदा।।

झूठ, अधर्म, अत्याचारों से, विरत उम्र भर रह पाऊं।
सत्य, अहिंसा, भक्ति के, पथ का मैं राही बन जाऊं।।

हो अच्छा, बुरा, मित्र या शत्रू, बांटू सबको ज्ञान सदा।
अपने बल और बुद्धि पर ना, हो मुझको अभिमान कदा।।

हो सच्चा, अटल, आचरण मेरा, डिगे नही ईमान कदा।
मात-पिता ओर गुरूओं का मैं, किया करू सम्मान सदा।

दया, धर्म, और प्रेम सदा, जीवन में मेरे साथ रहें।
दीन, दुखी, दुर्बल लोगों के, रक्षक मेरे हाथ रहें।।
मेरी आँखो में समरसता, और दया का वास रहे।
रहे लबों पे नाम तेरा और, मन को तेरी प्यास रहे।।

हे माँ वीनावादिनी वर दो …

सोमवार, 20 अगस्त 2007

लोग

अक्सर लोग मिलते हैं, बिछुड जाते हैं, जमाने में।
जिन्दगी यूं ही गुजर जाती है, आने-जाने में।।
कुछ लोग मगर दिल में, बस जाते हैं इस तरह।
तमाम उम्र कम पडती है, उन्हे दिल से मिटाने में।।

शुक्रवार, 17 अगस्त 2007

चिड़िया

एक चिड़िया थी अनजानी सी, जो घर पर मेरे रहती थी।
अक्सर मुझसे बतियाती थी, अक्सर मुझसे कुछ कहती थी।।

वो चिड़िया प्रेम पुजारिन थी, मुझ जालिम से तंग रहती थी।
अक्सर मुझ पर चिल्लाती थी, अक्सर वो लडती रहती थी।।

जब हम दोनो अनजाने थे, अक्सर हममे ठन जाती थी।
मैं उसका घर रोज जलाता था, वो फिर घर नया बनाती थी।।
लडते-लडते फिर मुझमें भी, थे प्रेम के अंकुर पनप उठे।
मैं दाना उसे खिलाता था, वो मुझको गीत सुनाती थी।।

एक रोज मगर फिर नियति की, घनघोर घटा घर घिर ही गयी।
वो नन्ही चिड़िया प्यारी सी, टकरा पँखे से गिर ही गयी।।

मैं बस लाचार, विमुख बैठा, था मौत का मंजर देख रहा।
एक प्रेम पुजारिन चली गयी, और मैं खुद को था कोस रहा।।

अब रह-रह कर वीराने में, वो याद मुझे आ जाती है।
हो मुर्ख, रहोगे मुर्ख सदा, यह श्राप मुझे दे जाती है।।
तुम मनु-पुत्र बस जिन्दा हो, जीना तुमने जाना ही नही।
बस दौड़ रहे अविरत, अविराम, कभी खुद को पहचाना ही नही।।

यह एक सत्य था शनि लिखा, और काव्य कंटीला बना दिया।
है प्रेम मनुज क्या जानेगा, अभिशाप पंक्षी ने सुना दिया।।